सूरत नहीं सीरत - मन की बात नेहा के साथ
पल्लवी एक मध्य वर्गीय परिवार की पढ़ी लिखी, सवभाव से सरल, समझदार और रिश्तों को सहेज के रखने वाली लड़की है | 2 साल से पल्लवी की पढ़ाई पूरी हो चुकी है और तब से ही उसके माँ पापा के लिए पल्लवी की शादी के लिए लड़का देखना एक मुख्य काम है, लेकिन शादी की कही बात नहीं बन पायी थी अब तक !!
दरअसल गुणों से संपन्न पल्लवी बस रंग में कुछ सावली-सलोनी जो थी , अच्छी सीरत होने के बाद भी सावली सूरत का मोल चूका रही थी पल्लवी..!!
पल्लवी के पिता सतीश जी एक स्कूल में अध्यापक थे और माँ एक ग्रहणी | इन 2 सालो में नजाने कितने रिश्ते आये लेकिन पल्लवी को देख कर जाने के बाद बात आगे ही नहीं बढ़ी !! माँ-पापा की भी अब चिंता बहुत बढ़ गयी थी |
जब भी लड़के वाले आते, पल्लवी को सजा कर त्यार किया जाता, घर में लड़के वालो के स्वागत में कोई कमी ना रह जाए सोच सतीश जी हर संभव कोशिश करते थे | लड़के वालो के आगे पल्लवी को शो पीस (show piece) के जैसे बैठा दिया जाता और लड़के वाले चाय नाश्ता करते और चलते बनते !!
2 साल से नजाने कितनी बार पल्लवी एक सामान के जैसे कितने लड़के वालो को दिखाई जा चुकी थी !! पर हर बार पल्लवी के दबे रंग की वजह से कही बात नहीं बनी !!
इन सब चीज़ो से पल्लवी अब बहुत आहत होने लगी थी..!! पल्लवी के पापा सतीश जी भी अब गहरी सोच में पड़ चुके थे | कई रिश्तेदार तो पल्लवी के सावले रंग को देखते हुए सतीश जी को बड़ी रकम दहेज़ के रूप में देने की सलाह देते !! लेकिन हमेशा से सतीश जी दहेज़ के खिलाफ ही रहे थे | और आज भी दहेज़ जैसे कुप्रथा को बिलकुल समर्थन नहीं देते |
सतीश जी हमेशा कहते कि कोई तो होगा जो सूरत नहीं सीरत का मोल समझे, पर आज के समय में जैसे ये इतना आसान काम न था !! बस यूँ ही एक साल और बीत गया और कही शादी की बात न बनी !!
आखिर एक दिन पल्लवी की बुआ एक रिश्ता लायी -
"सतीश रिश्ता पक्का समझ, बस 10 लाख दहेज़ देना है और शादी के लिए हाँ करवाने की जिम्मेदारी मेरी" - बुआ ने पुरे दावे के साथ कहा !!
"पर दीदी दहेज़ का लालच दे पल्लवी को बियाह देना, मुझे सही नहीं लगता, मैं चाहता हु की पल्लवी के लिए कोई ऐसा घर मिले जो उसकी सूरत नहीं सीरत का मान करे" - सतीश ने नम्रता से कहा |
"तब तो उम्र भर घर पर बैठा कर रखने की तयारी कर ले तू पल्लवी को, आज-कल रंग रूप का मोल होवे है, जमाना बहुत बदल गया है !!" - बुआ ने थोड़ी उच्ची आवाज में बोलते कहा |
पल्लवी ये सब सुन बहुत आहत हो रही थी !!
10 लाख रूपये.......!!
शादी.............!!
पल्लवी को अच्छा नहीं लग रहा था ये सब | पल्लवी को परेशान देख माँ ने उसे अपने पास बुलाया
"तू किस बात से परेशान है पगली, सब हो जाएगा" - माँ ने पल्लवी को समझाते हुए कहा |
"माँ जिन्हे मुझसे नहीं पैसो से प्यार हो, उनके घर मुझे बियाह दोगी क्या" - पल्लवी ने कुछ डरे हुए, आँखों में बहुत प्रश्न और हैरानी से माँ को कहा |
"बेटा, तू चिंता मत कर बियाह जैसे भी होगा, पर तू अपने गुणों से, अच्छी सीरत से सबका दिल जीत ही लेगी, हमे तुझ पर नाज़ है पल्लवी" - माँ ने पल्लवी का माथा चूमते हुए कहा |
सतीश जी दूर से पत्नी की बात सुनते हुए जैसे काफी सहमत भी हुए !! सबको ये ही लगा की एक बार शादी हो गयी तो पल्लवी अपने संस्कारो से सबका दिल जीत ही लेगी | पल्लवी के गुण सबको अपना बना ही लेंगे !!
आखिर सतीश जी ने जैसे तैसे 10 लाख का बंदोबस्त किया और इस शादी के लिए हाँ कर दी !! कुछ ही दिनों में शादी पक्की भी हो गयी !! और आज शादी का दिन था |
"बेटा, सबको मान-सम्मान करना, और सबको अपनापन देना, देखना सब अच्छा होगा" - माँ ने पल्लवी को शादी के जोड़े में देख भावुक होते कहा |
"माँ पता नहीं वो मुझे, मेरे रंग रूप को दिल से अपना पाएंगे कि नहीं" - पल्लवी कुछ घबराई सी थी |
"देखो बेटा, असल ज़िंदगी में कोई चमत्कार नहीं होता, तुम्हे उनको समय देना होगा, जाते ही सब ठीक न भी लगे पर तुम कोशिश करते रहना, उनकी ज़िंदगी में तुम नयी रहोगी, तुम्हे अपने लिए जगह बनानी पड़ेगी !! समय तो जाएगा लेकिन मुझे पता है तुम सबका प्यार हांसिल कर ही लोगी" - माँ ने पल्लवी को गले लगाते कहा |
पल्लवी की उलझन कुछ शांत हुई | शादी की रस्में भी पूरी हुई और विदाई की मुश्किल घडी को पार कर अब पल्लवी अपने ससुराल पहुंच चुकी थी !!
ससुराल पहुंचते ही रिश्तेदारों में पल्लवी के रंग को ले कर फुसफुसाहट चालु थी "अरे ये कैसी लड़की बहु के रूप में ले आये तिवारी जी" - भीड़ में से एक फुसफुसाहट की आवाज पल्लवी के कानो तक पड़ी |
पल्लवी के आँखों में आंसू भर आये !! पर पल्लवी को माँ की बात याद आयी कि कोई चमत्कार नहीं होगा, तुम्हे कोशिश करते रहनी होगी !! ये दिन भी बीत गया |
अगले दिन मुँह दिखाई थी पल्लवी को फिर से बहुत आलोचना वाली फुसफुसाहट का सामना करना पड़ा !! कोई खुल कर तो नहीं बोला पर कानो तक आधी अधूरी बात दिमाग में पूरी हो जा रही थी !!
दिल मानो रो दे रहा हो, पर चेहरे पर मुस्कान थी !! क्या करती पल्ल्वी, बस सह ले गयी !!
कुछ दिन बीत गए, ससुराल में भी पल्लवी किसी को ख़ास पसंद नहीं थी !! दबे रंग की वजह से उसे कभी न कभी ताना मिल ही जाता !! कहने को भरा पूरा परिवार था सास-ससुर, देवर, ननद पर पल्लवी को साथ जैसे किसी का ना था !! कभी कभी सास ननद खुल कर पल्लवी के रंग का मजाक उड़ा हस पड़ते और पति ने भी कभी किसी को चुप नहीं करवाया !!
पल्लवी अपने सम्मान को ताक पर रख कर सबका सम्मान करती !! अपने आत्म-सम्मान को गिरा कर पल्लवी ने हमेशा सबके आत्म-सम्मान को ऊपर रखा !! पर दिल से पल्लवी बहुत दुखी रहने लगी | हमेशा आलोचना ही सुन पल्लवी का मनोबल गिर सा गया था जैसे !!
पर पल्लवी ने सबके दिल में जगह बनाने की कोशिश नहीं छोड़ी कभी !! और आखिर सफलता मिली भी, शादी को एक साल पुरे हो चुके थे और अब घरवालों को पल्लवी के संस्कारो और गुणों ने जीत लिया था !! बस कभी कभी कोई रिश्तेदार आता या रिश्तेदारों से भरे समारोह में जाना होता तो पल्लवी को आलोचना का सामना आज भी करना पड़ता !!
अब पल्लवी माँ भी बनने वाली थी, नौवा महीना चल रहा था !! घर में अलग ही ख़ुशी थी, पल्लवी भी अपनी जिंदगी में खुश थी और आने वाली ज़िंदगी के लिए बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी |
दिन यूँ बीतते गए और आखिर वो दिन आ ही गया, पल्लवी ने एक बहुत प्यारी बेटी को जनम दिया |
अस्पताल के बिस्तर पर दर्द में पड़ी पल्लवी बेटी का चेहरा देख अलग ही सुख मिल रहा था जैसे !! कि तभी पल्लवी की चाची-सास पल्लवी की बेटी को देखने आयी
"अरे बिटिया रानी कहा है, हमे भी मिलवाओ भाई" - चाची-सास ने हसते हुए कहा |
"लीजिये-लीजिये आप भी मिलिए अपनी पोती से, आपका ही इंतज़ार था दीदी" - पल्लवी की सास ने पोती को उनकी गोद में देते कहा |
"हे भगवान्, बिटिया का रंग भी दबा ही लगे है !! माँ को पड़ गयी बिटिया भी !!" चाची-सास ने बिटिया को देखते ही कहा |
पल्लवी ये सब सुनती मानो रह ना पायी, आज तक अपने लिए आलोचना सुनती पल्लवी, अब बेटी के लिए ये नहीं होने देना चाहती थी............|
"काकी, ये मेरी बेटी है, अभी ही जनम हुआ बच्ची का, उसको शो पीस जैसे न परखा जाए !! मेरी बेटी है मुझ पर ही जायेगी | आज तक मैंने अपने लिए कभी आवाज नहीं उठाई पर मैं अपनी बेटी का मनोबल इन चीज़ो की वजह से नहीं गिरने दूंगी !! मैंने मेरे लिए शुरुवात में ही आवाज उठायी होती तो इतना दुखी नहीं होने देती खुद को, पर मेरे माँ-पापा की सीख थी काकी कि सबका सम्मान करू मैं.......!! पर बस ये सब मेरे तक ही रुक जाए तो अच्छा होगा !!
बेटियों के जनम पर अक्सर लोगो को लष्मी आयी है कहते सुना है , पर ये कहना तो दूर, आप तो रंग को ले कर शुरू हो गयी काकी !!
अगर लक्ष्मी नहीं मेरी बेटी तो ना सही.........
अगर उसका रंग काला तो काला सही.......
माँ काली के रूप में ही आप याद रखिये आज से इसे.........!!"
ये सब एक सांस में कहती पल्लवी जब शांत हुई तो पुरे कमरे में सन्नाटा पसर गया !! काकी भी वहाँ खड़े सबके चेहरों पर पल्लवी के कहे शब्दों के लिए सहमति देख रही थी !! अब घरवाले भी पल्लवी की मन की बात समझ रहे थे और सहमत थे....... !! काकी आखिर बेटी को देख वहाँ से चल दी |
अब तक जो इतना सह रही थी वो बहु थी, पर आज वही बहु एक माँ है......
शायद एक बहु कमजोर हो सकती है पर एक माँ कभी नहीं.......|
प्यार और सम्मान हर किसी का हक़ है........ सबकी भावनाओ का सम्मान करे.... सम्मान दो सम्मान लो............|
Thank You.......
disclaimer : इस कहानी के सभी पात्र (पल्लवी, सतीश और सभी चरित्र) काल्पनिक है | यहाँ पर लिखी सभी कहानिया किसी भी धर्म, मानवता के विपरीत नहीं है | हम रंग रूप पर की जा रहे भेद भाव के सख्त खिलाफ है | यह केवल एक मन की बात है जो केवल readers को entertainment (मनोरंजन) करने के लिए है | यहाँ जो भी content है उसके सारे copyright mannkibaatbyneha के है..|
13 Comments
मा के आंचल की छांव में, बेटी हो या बेटा हों,
ReplyDeleteकोई टिप्पणी बर्दास्त नहीं होती,
संतान से बड़ी, और कुछ खास जीने कि वज़ह नहीं होती।
बेटियों को दहेज दो, कोई बात नहीं, परंतु दहेज क्या देना है ये जान लो
बेटियों को पढ़ाई करवाई जानी चाहिए, 🙏 1 पहला दहेज🙏
घर गृहसथी के लिए तयार कर 🙏शादी करवानी चाहिए 🙏
धन्यवाद
काले गोरे का भेद नहीं हम सब हिन्दुस्तानी है।
हर नारी देवी है, कोई दुर्गा है तो कोई मा कली है।
बहुत मनोर्मक चित्रण किया गया है, story me
MAA or बेटी का।
bhut khoob bhai.. bilkul sahi..
Delete:) :)
ReplyDeletethank you
ReplyDeleteWow
ReplyDeleteInspirational 👍👍
ReplyDeleteThank you
DeleteInteresting lines
ReplyDeleteBeautiful
ReplyDeleteThank you
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteVery nice Neha....keep it up.
ReplyDeleteThank you
Delete