परवरिश - मन की बात नेहा के साथ
बचपन के सीखे हुए सबक और उन सबक से भरी यादों का कुछ ख़ास ही स्थान होता है, न तो वो सबक कभी भूले जाते है, न ही वो यादें...........!!
"आज ऑफिस से जल्दी घर आ पाओगी क्या सुगंधा, मैं भी जल्दी आ जाऊंगा, डिनर के लिए बाहर चलते है कही" - फ़ोन पर बात करते सुगंधा के पति सुमित ने सुगंधा से कहा, सुमित ने ऑफिस से ही सुगंधा को फ़ोन किया था।
"अरे सुमित, लेकिन आज कैसे, आज तो ऑफिस से जल्दी निकल पाना मुश्किल है, बहुत काम है, किसी और दिन का प्लान कर लेते है न" - सुगंधा ने सुमित से फ़ोन पर कहा।
"ह्म्म्मम्म, पर मैंने रूही से वादा भी कर दिया सुगंधा, अच्छा चलो मैं रूही को संभाल लूंगा" - सुमित ने थोड़ा ढीली आवाज में सुगंधा को कहा।
रूही, सुगंधा और सुमित की 12 साल की बेटी है, जो डिनर के लिए बाहर जाने का प्लान सुन बहुत उत्साहित है, सुगंधा और सुमित दोनों के जॉब करने की वजह से रूही के लिए घर में एक आया भी रहती है जो शाम को सुमित या सुगंधा के आ जाने के बाद अपने घर चली जाती थी । आज सुमित ऑफिस से जल्दी ही घर आया तो आया भी जल्दी चली गयी और रूही से किये वादे के अनुसार रूही को लगा कि आज बाहर खाने के लिए जाना है, पर जब रूही को सुमित ने बताया कि आज माँ (सुगंधा) का जल्दी आना संभव नहीं, तो रूही ने बस जिद्द और रोना शुरू कर दिया था !!
सुमित को इस बात का एहसास था ही कि रूही को बाहर ना जाने के लिए मनाना एक मुश्किल काम होगा !! और हुआ भी ठीक ऐसा ही, सुमित के कई तरीको से समझाने के बाद भी रूही समझने को त्यार ही नहीं थी !! सुगंधा भी घर पर जब रात में आयी तो रूही का रुखा व्यवहार देख उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन रूही ने बस जिद्द ठानी थी कि उसे आज बाहर का ही खाना है और अंत में खाना बाहर से ही आर्डर करना पड़ा !!
रूही ने, सुगंधा ने और सुमित ने खाना खाया और रूही अब सो चुकी थी, लेकिन सुगंधा के चेहरे पर कुछ उलझने साफ़ देखी जा सकती थी !!
"किस बात की चिंता में खोई हो सुगंधा, क्या सोच रही हो" - सुमित ने सुगंधा के पास बैठते कहा।
"सुमित रूही की जिद्द दिन पर दिन बढ़ती जा रही है, जिस चीज़ के लिए बोलती है उसे अधिकतर हम दिलवा ही देते है, लेकिन अगर कुछ न दे पाए तो कैसे उसका मुँह उतर आता है और जिद्द में उसका रवैया बदल जाता है, ये सब मुझे कुछ ठीक नहीं लगता" - सुगंधा ने चिंता में सुमित से कहा ।
"अभी छोटी है अपनी रूही, समय के साथ साथ समझ जायेगी" - सुमित ने सुगंधा को विश्वास दिलाते कहा ।
"हम दोनों पूरा दिन ऑफिस में काम करते है, फिर घर पर आ कर मैं घर के कामो में लग जाती हूँ, तुम भी तो घर आ कर रूही को पढ़ाने में जुट जाते हो !! आखिर इतना सब हम रूही के लिए ही तो कर रहे है, लेकिन अब कुछ चीज़े रूही को भी समझनी चाहिए !! हमारा रूही की हर जिद्द को पूरा करना अब छोड़ना होगा, उसे ना सुनने की आदत भी होनी चाहिए सुमित" - सुगंधा इस बार कुछ और चिंतित सी दिखी।
"ह्म्मम्म्म्म, शायद तुम ठीक कह रही हो, हमें ध्यान देना होगा !!" - सुमित ने सुगंधा की बात पर सहमति दिखाते कहा।
अगले दिन छुट्टी थी, आज सुगंधा ने रूही को कुछ चीज़ो का एहसास करवाने की सोची !! सुगंधा रूही को घर से कुछ दूरी पर बन रहे एक मकान के पास ले गयी, जहा कई मजदुर काम कर रहे थे, वही मजदूरों के बच्चे कड़ी धुप में खेल रहे थे, तन पर मिटटी, मैले कपडे, सुगंधा ने रूही के कुछ पुराने कपडे उन बच्चो को देने के लिए अपने हाथ में पकडे थे, रूही के हाथ से सुगंधा ने उन कपड़ो को बच्चो में बटवाया !! सब बच्चो के चेहरे जैसे खिल से गए थे !!
"मम्मा, ये बच्चे कितने मैले कपडे पहने हुए थे, और कितनी धुप में बैठे है !! और ये स्कूल भी नहीं जाते क्या !! मेरे पुराने कपडे पा कर भी वो इतना खुश हो रहे थे न !!"- रूही ने कई प्रश्न एक साथ कर डाले।
"बेटा, उनके कपडे मैले है तभी तो आपके कपडे अब उनके लिए दिये, उनके काम आएंगे ये कपडे, और धुप में बैठने की उनको आदत हो गयी है और तुम्हारे पुराने कपडे उनके लिए नए जैसे है, उनके चेहरे की ख़ुशी देख पता लगता है कि पुराने कपडे पा कर भी वो कितने खुश थे !! सबकी ज़िंदगी एक जैसी नहीं होती रूही, हर किसी को कही न कही समझौता करना ही पड़ता है, और ये समझौता करना आना ही चाहिए !!" - सुगंधा ने घर वापिस आते रूही से कहा।
शाम को सुगंधा रूही को घुमाने के बहाने अनाथ आश्रम ले गयी, जहा बच्चो को सादा सा खाना भी ख़ुशी से खाते देख रूही हैरान सी थी, और सुगंधा ने रूही के हाथ से घर का बना गाजर का हलवा सब बच्चो में बटवाया, बच्चो के चेहरे की ख़ुशी देखने लायक थी......!! रूही को एहसास हो रहा था कि छोटी छोटी ख़ुशी भी कितनी बड़ी हो सकती है, सबकी ज़िंदगी इतनी आसान जो नहीं हैं !!
वापिस घर लौटते हुए सुगंधा रूही के चेहरे पर कई बदलाव देख रही थी मानो रूही भी कही तो कुछ समझ पा रही थी जैसे कि सब कुछ सबको नहीं मिलता, फिर भी ख़ुशी से जीना ही एक कला है !! घर आते ही रूही ने अपने कई खिलोने भी उन बच्चो में बाटने के लिए निकाल दिए !!
"मम्मा, वो बच्चे ये खिलोने पा कर भी कितने खुश हो जाएंगे न, हम ये भी उनको दे कर आये क्या !! मैं अब इनको नहीं खेलती" - रूही ने आँखों में चमक भरते कहा।
सुगंधा अब खुश थी कि रूही ये समझ रही है कि कई बच्चो के लिए तो वो चीज़े भी ख़ास है जीन चीज़ो से अब वो ऊब चुकी है !! और उससे बड़ी बात ये थी कि रूही इन बातों का एहसास कर रही थी !! रूही ने वो खिलोने भी बच्चो में बाटें, और घर पर बने गाजर के हलुए को भी अलग ही ख़ुशी से खाया जिसके लिए रूही हमेशा मुँह बनाया करती थी !!
रात को सोने से पहले सुगंधा ने अपने बचपन की फोटोज दिखाते रूही को कई चीज़ो का एहसास करवाया..........
"रूही देखो ये मम्मा जब छोटी थी तब की फोटो, देखो मम्मा का कोई अपना रूम नहीं था, मौसी, मामू सब साथ में सोते थे, अपने कपडे तक मम्मा और मौसी एक दूसरे से शेयर करती थी, मामू को खिलोने मम्मा और मौसी मिल के खेलती थी......!! मामू बड़े थे तो उनकी किताबें भी हमारे काम आ जाती थी !!" - सुगंधा ने रूही को फोटोज दिखाते सब बताते कहा।
"मम्मा, आपको नयी किताबे, कपडे और खिलोनो का मन नहीं करता था !!" - रूही ने हैरानी से पूछा।
"बेटा, जो भी मिलता था उसी में ख़ुशी मिलती थी, माँ-पापा से जिद्द नहीं करते थे, क्यों कि माँ-पापा अपनी तरफ से बच्चो को सब अच्छा ही देते है, सब बेस्ट ही देते है, इसलिए जो भी दे उसको ही स्वीकारना चाहिए !! जिद्द करके लेना तो किसी को दुःख पंहुचा कर लेने जैसा हुआ न !!" - सुगंधा ने रूही को उसके सिर पर सहलाते हुए कहा।
रूही एकदम शांत सी थी, और कुछ देर सोचने के बाद रूही ने आखिर वो बोला जो सुगंधा सुन अब उलझनों से मुक्त हो गयी थी !! सुगंधा की मन की बात मानो पूरी हो गई..........
"माँ, मुझे भी अब मौसी, मामू और आपके जैसे गुड बनना है, अब से मुझे भी जिद्द नहीं करनी, आयी लव यु मुम्मा" - रूही ने प्यार से सुगंधा को गले लगाते कहा।
"आयी लव यु बेटे टू" - सुगंधा ने मुस्कुराते रूही का माथा चूमते कहा।
अगले ही दिन रूही अपनी पुरानी किताबें और पुराने शूज भी उन बच्चो में बांटने के लिए बहुत उत्साहित थी, उन बच्चो की ख़ुशी रूही के चेहरे की ख़ुशी बन गयी थी जैसे, और एक अलग एहसास जो पनपा था ज़िंदगी को ले कर उसकी तो बात ही अलग थी !! जितना मिला उसी में कैसे खुश रहना है ये रूही ने उन बच्चो से सीखा और अपनी बेकार चीज़े भी शायद अगर किसी के काम की हो तो उनको उनमें बाटना भी एक सुख जैसा है...........ज़िंदगी ने जितना दिया उसमें भी मुस्कान भरे रखना रूही ने इतनी कम उम्र में सिख लिया था........!!
ऐसा एहसास बचपन से करना एक बेहतर मानवता की नीव पक्की करता है......... और इस एहसास को बच्चो के अंदर भरना हर माता-पिता का एहम फ़र्ज़ भी है..........
आखिर ज़िंदगी से मिले कई खालीपन को अपनी मुस्कान से भरते रहना भी एक कला है, जिस कला का बीज बचपन से पनप जाए तो उससे अच्छा और कुछ भी नहीं..................।
Thank You......
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8 Comments
👌👌👌
ReplyDeleteThank u dear..
Delete👏👏👌👌
ReplyDeleteThank You rimpy...
DeleteYour every story is mesmerising 😊
ReplyDeleteThank you shikha..
DeleteChanchal Mann, or Shanti, dono bacchon me ek sath milta hai.
ReplyDelete😊🙏😊 Nice story ☑️
Thank You bhaiya...
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