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वो भी एक दौर था - बचपन !!

ज़िंदगी के सबसे प्यारे पल होते है बचपन के, हो भी क्यों ना बचपन इतना भोला और मासूम जो होता है !! ना जिम्मेदारियों का भोझ, ना कोई फ़िक्र | ज़िंदगी के कई पहलू से अनजान होता है बचपन | उस दौर जैसा बेफिक्र और कोई दौर नहीं होता !! ना अच्छे बुरे की पहचान ना सही गलत का फर्क | बस मौज मस्ती और खुल के जीने का एक ही दौर है - वो है बचपन |


हम चाहे कितनी भी उम्र के हो जाए, बचपन हम सबके लिए ख़ास होता है | बचपन की हर बात ख़ास है - बचपन के साथी ख़ास है, बचपन की वो बारिश वाली यादें ख़ास है, वो स्कूल ना जाने के लिए किये बहाने ख़ास है, वो माँ पापा का प्यार पाने के लिए रोने की एक्टिंग करना ख़ास है !! हमे भी पता नहीं होता कि बचपन इतना ख़ास है और जब तक समझ आती है, हम बड़े हो गए होते है !! 



कितनी अजीब बात है न, बचपन में इच्छा होती थी - हम जल्दी से बड़े हो जाए, और आज इच्छा होती है कि फिर से बचपन आ जाए !! तब कहा पता था कि बड़े होने कि शर्ते बहुत है !! जिम्मेदारियां निभाने के फ़र्ज़ बहुत है !! अपने और अपनों के लिए कर्तव्य बहुत है !! हमे तो बस बड़े होना था ताकि किसी बात पर रोका टोका ना जाए !! और आज लगता है, कोई तो हो अपना, जो गलत कदम पर रोक टोक जाए | 

" क्यों समझदार हो गए हम, नादान ही अच्छे थे 

 पूरी दुनिया कितनी सूंदर थी, जब हम बच्चे थे " !!

" अब क्यों ये दुनिया खूबसूरत नहीं लगती

   शायद असली सूरत पहचानने लगे है ,

   मतलबी चेहरे यहाँ नकाब बहुत है

   अपनों की आढ़ में फरेब बहुत है " !!

बचपन कि यादों को शब्द रुपी माला में पीरो पाना बहुत मुश्किल है, ऐसा लगता है कि कोई ना कोई मोती जैसे छूट ही जाएगा !!

माँ-पापा के साये में कितनी बेफिक्री थी न, सब मुश्किलें माँ-पापा जो संभाल लेते थे !!

आज हम भी जब माँ-बाप बने है, वही फ़र्ज़ हमे भी निभाना है 

जैसे उन्होंने हमे संभाला था, अब हमे नयी पीढ़ी को संभालना है !!

हम सबके किस्से अलग होंगे बचपन के, पर जब भी कोई याद करता है चेहरे पर मुस्कान आ जाती है !! बचपन तो पीछे छूट ही गया है पर हममे से बहुत से लोग ऐसे होंगे, जिनका वो घर, वो शहर भी पीछे छू गया है | आज काम की वजह से हममे से अधिकतर लोग अपने घर, शहर या देश से भी दूर है !! 

भले ही आज हम कितने भी सफल हो परन्तु वैसा सुकून आज नहीं मिलता !! इस सच्चाई की अनुभूति होती है अब - कुछ चीज़े पैसो से तोली नहीं जा सकती !! अगर होती कोई कीमत वो समय वापिस पाने की, आज हम वो कीमत चुकाने को त्यार होते !! आज लगता है एक दिन तो मिले बचपन वाला पर हो नहीं सकता !! समय की इतनी कमी है और काम बहुत ज्यादा !! समय मिल भी जाए परन्तु वो यार दोस्त जुदा है | कभी कभी दिल भर आता है वो बचपन की गलियों को याद करते हुए, समय इतना जल्दी हाथ से क्यों छूट जाता है !! 


गार्डन में बच्चो को खेलते देख, बचपन मेरे आँखों पर रुक सा गया था, वो मिटटी का बनाया शिवलिंग और मिटटी का घर फिर याद आ गया था !!

बचपन कि वो गुल्लक में 1 -2 रुपये भी ख़ुशी दे जाते थे,

अब तो मोटी सैलरी भी आ कर चली जाती - सुकून नहीं आता !!

भागते जा रहे है इतनी भागम भाग में हम सब, मगर कही कोई मुकाम नहीं आता !!

हकीकत तो ये है कि हम सब में एक बच्चा तो हमेशा ही है, चाहे हम कितने भी उमरदार क्यों न हो जाए !! पर शायद हम समझदार बनने में बचकान को नज़रअंदाज़ करते है | और वो बच्चा जिम्मेदारियों के तले दब जो जाता है !! आज जरुरत है अपने अंदर छिपे बच्चे से मिलने की, और स्वयं के अलग रूप से परिचित होने की !! कितने बदलते जा रहे है, ये एहसास खुद को करवाने की!! आखिर वो बच्चा ही तो बचपन का साथी है !!

आज बच्चो को समय से पहले ही बड़े होते देख बहुत हैरानी होती है, मानो बचपन के मायने ही बदल गए हो जैसे !! उनके भोलेपन और मासूमियत पर हर रेस में प्रथम आने का दबाव जो है !! ये हम ही है जो जरुरत से पहले उन्हें समझदार बना रहे है !! फूल रूपी बचपन को समय के बहाव के साथ ही बढ़ने दो |

" छोड़ दो उन्हें अभी तो वो नादान ही अच्छे है,

  मत डालो कोई दबाव उन पर, अभी तो वो कच्चे है,

  पंखों को पनपने दो, उनके होंसले सच्चे है,

  उड़ान उच्ची जरूर भरेंगे, अभी तो वो बच्चे है !!

बचपन सबके लिए ख़ास है दोस्तों, इन बच्चो के बचपन को भी ख़ास बनाना हमारा ही तो फ़र्ज़ है | इनकी मासूमियत संजोये रखना भी हमारा ही कर्त्तव्य है | बचपन इनकी नीव है, आओ इनकी जड़ो को स्वयं ही पनपने दे | समय दे !! आखिर उनका भी तो बचपन समय के साथ बीत जाएगा !! उनकी भी यादों को मीठा रहने दें | 

" अपने अंदर के बचपन को उनमें जिन्दा रहने दें" 

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