"बहुत बार हम खुद को दूसरे के नज़रिये के अनुसार बदलना सही समझते है !! क्या अपना नज़रिया स्वीकारना या समझना इतना मुश्किल है....." !!
12 साल की रीत आज स्कूल से आयी तो कुछ बुझी बुझी सी दिख रही थी !! आते ही रीत ने गुस्से में अपने हाथ की घड़ी को निकाल बिस्तर पर दे फेका..!! माँ श्वेता को भी रीत के व्यवहार से बहुत हैरानी हुई !!
ये घड़ी तो रीत की favourite घड़ी है जो अभी दो दिन पहले ही रीत के जन्मदिन पर उसकी cousin बहन कीर्ति ने अपनी कलाई से उतार रीत की कलाई पर बहुत प्यार से पहनाई थी | क्यों कि जब कीर्ति कुछ दिन पहले ही इस घड़ी को अपने लिए खरीद कर लायी थी तो रीत को घड़ी खूब पसंद आयी थी !! कीर्ति की नज़र में रीत को देने के लिए इससे अच्छा उपहार कोई और नहीं था ! रीत घड़ी का उपहार पा कर इतनी खुश थी कि दो दिन से इस घड़ी को लगाए घूम रही थी | इस घड़ी को पसंद भी रीत ने खुद ही किया था !!
माँ श्वेता भी रीत को कई बार पूछ चुकी कि आखिर रीत उदास क्यों है..!! पर रीत ने माँ को ठीक से जवाब तक न दिया !! श्वेता ने भी ज्यादा पीछे न पड़ते हुए कुछ समय के लिए रीत को ऐसे ही छोड़ देना सही समझा |
अब तो शाम हो चली थी | पर रीत का मूड अभी भी टस से मस ना हुआ..!! उसका हर बात पर इतना चिढ़ना, अब तो श्वेता को रीत की चिंता भी और उसपे थोड़ा गुस्सा भी आ रहा था !!
आखिर माजरा क्या है, कुछ बताने का नाम भी तो नहीं ले रही थी रीत !!
अब शाम को रीत के tution जाने का समय था | रीत उसी उदास चेहरे से tution के लिए निकल ही रही थी कि माँ ने देखा कि रीत ने अभी भी वो घड़ी नहीं पहनी थी !!
ऐसी भी क्या उदासी भला जो गुस्सा अपनी मन-पसंद घड़ी तक पर बरस रहा हो ..!!
माँ ने झट से घड़ी ले रीत को देते बोला - "तुम्हारी मन-पसंद घड़ी को कैसे भूल गयी आज, जो दो दिन से कलाई से उतार तक नहीं रही थी तुम" !!
"माँ मुझे ये घड़ी नहीं चाहिए" - बुझते मन से कहते रीत घर से बाहर निकल गयी !!
रीत तो चली गयी लेकिन श्वेता को बेचैन कर गयी - आखिर इसी घड़ी को पा कर रीत जन्मदिन वाले दिन कितनी खुश जो हुई थी !! सुबह कितनी खुश और उत्साहित थी जब स्कूल के लिए निकली थी |
ऐसा भी क्या हुआ जो रीत का ऐसा रवैया दिख रहा था !! रीत के tution से आते ही माँ ने रीत को अपने पास प्यार से बैठाया और माँ ने बहुत प्यार से रीत को पूछते हुए बोला -"रीत इतनी नाराजगी क्यों भला, स्कूल में कुछ हुआ क्या आज" !!
माँ के इतना बोलने की देरी थी कि रीत के आँखों से आंसू बहने लगे !! अब माँ की चिंता और बढ़ चली थी !!
"माँ मुझे ये घड़ी नहीं चाहिए" - रीत ने उदासी और मासूमियत से कहा |
"मेरे दोस्तों ने स्कूल में मेरा मजाक बना डाला माँ" - रीत ने रोते हुए बोला |
"ऐसा क्यों" - माँ ने बहुत चौकते हुए पूछा |
"माँ मुझे ये घड़ी नहीं पसंद करनी चाहिए थी, ये तो दीदी की पहनी हुई घड़ी है, पुरानी है !! मेरे दोस्त मुझ पर हस रहे थे" !! - रीत के चेहरे और बातों में बहुत भोलापन था...... और आँखों से मोटे मोटे आंसू गिर रहे थे....!!
"बेटा उपहार तो उपहार होता है, बहुत प्यार से दिया गया उपहार बहुत ख़ास होता है !! घड़ी तुमने खुद पसंद की है, अगर तुम्हे पसंद है तो किसी और के नज़रिये का तुम पर प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए |
वैसे भी घड़ी का काम तो समय दिखाना है, इसमें इतना तोल मोल करने वाली बात ही नहीं" - श्वेता ने समझाते हुए रीत से कहा |
"माँ इस घड़ी की वजह से मेरी बेइज्जती हुई है आज, सब मन ही मन मुझपे हस रहे थे !! ऐसा भी कोई उपहार होता है !! ये घड़ी की वजह से मेरा समय बहुत बुरा गया आज !! दिन बेकार हो गया.....!! इस घड़ी को लगाने से आगे भी सब बुरा ही होगा..!! मुझे इसे नहीं लगाना" - रीत ने मन की बात रखते हुए कहा |
शवेता ने रीत के आंसू पोछे और पूछते हुए बोला - "आज तो तुम्हारा रिपोर्ट कार्ड मिलने वाला था न, क्या हुआ उसका ??
"हाँ माँ रिपोर्ट कार्ड मिल गया, मेरा नतीजा मेरे दोस्तों में से सबसे अच्छा है" - रीत के चेहरे पर हलकी चमक थी |
"और आज जो तुम्हारा प्रोजेक्ट submission था, वो accept हुआ ??" - माँ ने पूछा |
"हाँ माँ मेरा प्रोजेक्ट भी accept हो गया" - रीत ने झुकी पलके रखते हुए जवाब दिया |
"तो फिर इस घडी से तुम्हारा समय बुरा कैसे हुआ रीत" - माँ ने चहकते हुए कहा !!
देखो रीत समय अच्छा बुरा हमारे पर निर्भर करता है, किसी वस्तु पर नहीं !! हम क्या सोचते है हमारे लिए ये जरुरी है | हमारा नजरिया दुसरो की सोच से बदल जाए, इतना कमजोर खुद को कभी नहीं होने दो रीत | आज का दिन और समय बेकार होने का कारण ये घड़ी नहीं बल्कि तुमने दुसरो के नज़रिये को खुद पर हावी होने दिया, ये है !!
दूसरे क्या सोचते है एक हद तक जरुरी है, पर उससे भी ज्यादा जरुरी तुम्हारी सोच और तुम्हारी पसंद होनी चाहिए |
तुम्हे कल भी ये ही घड़ी लगा कर जाना चाहिए, क्यों की ये तुम्हारी पसंद है | अपनी ख़ुशी में खुश रहोगी तो कोई तुम पर हावी होने की कोशिश तक नहीं करेगा !!
रीत की आँखें फिर से चमक उठी... और मन शांत हो गया !! अब चेहरा भी मुस्कुरा दिया |
रीत महज़ 12 साल की है, पर आज एक बहुत बड़ी सीख उसके दिमाग में घर कर गयी थी, जो उमरभर उसे याद रहेगी............!!
बच्चे तो नासमझ है, ऐसी नासमझी करने में तो हम बड़े भी पीछे नहीं है !! दुसरो की सोच का असर अक्सर हमारी सोच पर होता ही है !! दूसरे की सोच से खुद को दुखी कर लेना, ये अनुमति भी हम ही खुद को देते है !! इसी के चलते अक्सर अपनी पसंद भी नापसंद में बदल जाती है और ख़ुशी दुःख में.............!!
स्वयं को समझे और स्वीकारे...........|
Thank You
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9 Comments
Atyadhik manormak avem upyogi story hai
ReplyDeleteThank you avi bhai ☺
DeleteTruly said
ReplyDeleteThank you ☺
DeleteThank u rimpy ☺
ReplyDeleteNice👌
ReplyDeleteNice👌
ReplyDeleteDo you like to work as co author in my book I glad to have u
ReplyDelete👌🏻👌🏻👌🏻
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