प्यार से जुड़ा रिश्ता - मन की बात नेहा के साथ
रिश्ता खून का हो या ना हो...... भावनाओ का जरूर होना चाहिए..!! भावनाओ की गहराई से जुड़े रिश्ते अक्सर अधिक गहरे और अधिक मजबूत होते है....|
सरिता जी की तबीयत 2-3 दिन से कुछ ठीक नहीं थी और इसी बीच उनका बेटा अर्णव भी 3 दिन से ऑफिस के काम की वजह से दूसरे शहर गया हुआ था | सरिता जी का एक ही बेटा है जो multinational कंपनी में अच्छे औधे पर जॉब कर रहा है | सरिता जी के पति विवेक भी सुबह सरिता जी को आराम करने की हिदायत देते हुए ऑफिस के लिए निकल गए !!
सुबह के 11 बजे थे कि बगल के घर से सरिता जी की पड़ोसन रूचि सरिता जी की बिगड़ी तबीयत के बारे में सुन हाल चाल लेने आयी | रूचि और सरिता बातें ही कर रहे थे कि दरवाजे की घंटी बजती है !!
सरिता जी ने दरवाजा खोला तो सामने बेटे अर्णव को देख हैरान हो गयी !!
"अरे अर्णव बेटा तुम" - सरिता जी ने बहुत हैरानी से पूछा |
"माँ आपकी तबीयत का पापा से पता चला, आपने तो बताया भी नहीं मुझे !! आपकी चिंता हुई तो ऑफिस का काम जल्दी निपटा घर आ गया"
अर्णव के चेहरे पर माँ के लिए चिंता साफ़ दिख रही थी !! और सरिता जी अर्णव को अचानक से जल्दी आया देख हैरान थी !! अर्णव ने आते ही माँ सरिता का माथा छू कर बुखार देखा और जल्दी से अलमारी से B.P मॉनिटर मशीन निकाल सरिता जी का B.P चेक करने लगा |
पड़ोसन रूचि वही बैठी अर्णव और सरिता जी के रिश्ते की मिठास देखती बस मुस्कुरा रही थी !! कुछ देर अर्णव माँ के पास ही बैठा रहा | जैसे ही अर्णव बाद में फ्रेश होने के लिए गया, पड़ोसन रूचि ने बहुत पुरानी और नाज़ुक बात छेड़ दी जो बात सरिता भी कब की जैसे भूल चुकी थी !!
"लगता नहीं सरिता कि अर्णव तुम्हारा अपना बेटा नहीं, उसके मन में तुम्हारे लिए इतनी इज्जत और प्यार देख कोई ऐसा बोल ही नहीं सकता !! और तुम्हारे मन में अर्णव के लिए इतनी ममता तो सबने देखी ही है |
रूचि के इतना ही बोलने की देरी थी कि सरिता जी ने रूचि की बात बीच में ही काटते हुए, उन्हें ये बात यही रोक देने को कहा !!
और रूचि भी बस चुप हो गयी..........!!
"वो पुरानी बात है रूचि, उस बात का तो जिक्र भी अब घर में नहीं होता..... हम एक परिवार है" - सरिता ने रूचि को धीरे-पूरे से कहा |
और रूचि बस शांत हो गयी.......!!
रूचि के चले जाने के बाद सरिता आखिर उन यादों के समुन्दर में डूब ही गयी जो यादों को रूचि आज छेड़ गयी थी......!!
हलकी सी उम्र थी सरिता की जब बियाह कर वो इस घर आयी थी | सरिता के सास ससुर तो नहीं थे पर जेठ जेठानी और उनका 1 साल का बेटा अर्णव था जो घर की रौनक था | एक बच्चे से और घर के बड़ो (जेठ जेठानी) से घर भरा-पूरा लगता था | घर खुशहाल परिवार था | सरिता को आये एक साल ही हुआ था कि देखते ही देखते घर की खुशिया जैसे आँखों के सामने मिट्टी में मिल गयी !!
अर्णव के माँ-पापा का एक बहुत बड़ी कार दुर्घटना से सामना हुआ......!! दोनों गंभीर रूप से घायल हो चुके थे !! उसी कार में उनके साथ अर्णव भी था...!! उस समय अर्णव महज 2 साल का था |
जब घर पर फ़ोन कॉल के जरिये सरिता और पति विवेक को ये खबर मिली तो मानो पैरो तले से जमीन खिसक गयी हो !! दोनों हड़बड़ी में अस्पताल पहुंचे और पता चला कि चोटे बहुत गंभीर थी, ये बहुत बड़ी दुर्घटना थी......!! गंभीर चोटो की वजह से कोई बच नहीं पाया !! हाँ अर्णव अभी भी ज़िंदगी और मौत से लड़ रहा था |
पता नहीं भगवान् को क्या मंजूर था..!!
2 साल का बच्चा ज़िंदगी और मौत से अस्पताल में कई दिनों तक लड़ता रहा और अंत में अर्णव की जिंदगी की जीत हुई !!
परन्तु आगे क्या होने वाला था.........!!
अर्णव के अपने माँ-पापा अब इस दुनिया में नहीं थे...!!
ये दुखद था....... बहुत बहुत दुखद.......|
उन दिनों सरिता ने अर्णव का एक माँ जैसा ख्याल रखा था | अर्णव अपनी तोतली जुबान से सरिता को "छोटी-माँ" बोलता था......|
उस दुर्गघटना के बाद सरिता ने हमेशा अर्णव को अपने सीने से लगा कर रखा | सरिता के मन में अर्णव के लिए बहुत ममता और बहुत प्यार था और वो प्यार एक 2 साल का बच्चा अर्णव भी महसूस कर पाया.....!!
अर्णव की भी अब दुनिया सरिता में ही सिमट चुकी थी..| सरिता और विवेक का राजा-बेटा था अर्णव......|
जल्दी ही अर्णव ने सरिता को "छोटी-माँ" से "माँ" बोलना शुरू कर दिया...| इतना अपनापन और प्यार रिश्तो की जड़ो को और भी गहरा कर चूका था | अब सरिता छोटी-माँ नहीं "माँ" थी !!
सरिता और विवेक अपनी इतनी सी दुनिया में खुश थे......| अब दोनों की दुनिया बस अर्णव के इर्द गिर्द ही घूमती.......!!
सरिता और विवेक ने अर्णव के लिए अपनी संतान न करने का कठिन फैसला भी ले डाला..!! दोनों नहीं चाहते थे कि कल को अर्णव के मन में कोई भी गलत भाव आये और जाने अनजाने वो भी अर्णव को कभी दुःख नहीं पहुँचाना चाहते थे..!! अर्णव ही अब उनकी संतान था....!!
बस अर्णव को ढेर सारे लाड प्यार से बड़ा किया था सरिता और विवेक ने | अर्णव को अच्छे से अच्छी शिक्षा दिलवायी | अच्छी परवरिश दी, जिसका फल आज सबके सामने था....| अर्णव आज एक बहुत बड़ी कंपनी में बहुत अच्छे औधे पर जॉब कर रहा है और अपने काम में सफल है.....|
जब अर्णव केवल 12 साल का था तो किसी रिश्तेदार के मुँह से ये बात सुन कि अर्णव सरिता और विवेक का अपना बेटा नहीं है अर्णव खूब रोया था !! जैसे एक बच्चे के नाजुक दिल में घाव बहुत गहरा लगा हो......!!
अर्णव भागते हुए सरिता के पास आ खड़ा हो गया और मोटे मोटे आसुओं से आँखें भरी थी.....!! सरिता जी को सब बात पता चलने पर सरिता ने उसे सीने से लगा लिया | अर्णव की धड़कने कितनी तेज धड़क रही थी ये सच्चाई सुन कर.......!!
"माँ क्या मैं आपका बेटा नहीं, मुझे आपका ही बेटा बनना है माँ" - मासूम अर्णव ने बहुत तेज रोते हुए कहा |
सुनते ही माँ सरिता भी फुट फुट कर रोने लगी और अर्णव को अपने पास बैठाया |
"बेटे अर्णव, दुनिया तो बहुत कुछ बोलेगी, शायद तुम्हे आगे भी ये सुनने को मिले, मुझे इससे फर्क नहीं पड़ता !! पर क्या ये जानने के बाद तुम्हारे दिल में मेरे लिए माँ वाला प्यार कम हो जाएगा..!!" - सरिता ने रोते हुए अर्णव के सर पर हाथ फेरते हुए कहा |
"नहीं माँ नहीं, आप ही मेरी माँ हो, मुझे आपका ही बेटा बनना है" - अर्णव ने माँ को झट से गले लगाते बोला |
"बनना है मत बोलो अर्णव, तुम मेरे बेटे थे, हो और हमेशा रहोगे" - माँ ने अर्णव का माथा चूमते हुए कहा |
अब अर्णव थोड़ा शांत हो चला था, मासूम बच्चे की बेचैनी कुछ कम हुई थी अब !! उस दिन के बाद इस घर में आज तक कभी इन बातों का जिक्र नहीं हुआ......!! वो दिन को याद कर सरिता इतना खोई थी कि आँखो से आंसू आज भी बह निकले.....!!
इतने में अर्णव ने आ कर सरिता को आराम करने के लिए जबरदस्ती खींचते हुए बिस्तर पर लेट जाने को कहा |
"माँ आप बस अब आराम करोगी" - अर्णव ने थोड़ी सख्ताई और अपनेपन से कहा !!
"अरे बेटा मैं ठीक हूँ इतनी भी बीमार न हूँ" - माँ ने बहुत ही सरलता से कहा |
"माँ अब आपकी एक ना चलेगी, मैं आप पर नज़र रखने के लिए ही ऑफिस का काम जल्दी निपटा आपके पास आया हूँ !!" - अर्णव ने माँ का हाथ पकड़ उनके पास बैठते हुए कहा |
सरिता भी अपना प्यार भरा हाथ उठा अर्णव के सर पर रख मुस्कुराने लगी |
ना सरिता ने कभी माँ की ममता में कोई कमी आने दी और ना ही अर्णव ने एक बेटे के फ़र्ज़ में कोई कमी छोड़ी |
दोनों के मन का प्यार और प्यार का एहसास किसी खून के रिश्ते का मोहताज नहीं था !! अब ये रिश्ता भावनाओ से जो जुड़ा था.....!!
हम सबने कभी न कभी दिल का प्यार और भावनाओ की गहराई रिश्तों में जरूर महसूस की होगी... ये रिश्ते तो प्यार के है...!! जरुरी नहीं कि ये एहसास बस खून के रिश्ते में ही हो !! कभी कभी एक अनजान व्यक्ति दोस्त के रूप में इतना ख़ास बन जाता है कि भावनाओ की गहराई में उतर दिल को छू लेता है !! आपके मन की बात भी बिना बोले समझ ही लेता है, ये ही तो ख़ूबसूरती है गहरे रिश्तो की..!!
भावनात्मक रिश्ता किसी से भी जुड़ सकता है और जिससे भी जुड़ता है रिश्ते को अटूट बना देता है............|
Thank You
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14 Comments
Wow 👌
ReplyDeleteThank you
DeleteBeautiful story
ReplyDeleteThank you
DeleteKya khub barish thi, jo aasma ko chhod, zami pe aapse milne aai.
ReplyDeleteDharti ke गोंद me khilay phoolon ke chahre pe muskan laao.............
Bahut Khoobsurat story hai👌✏️✏️
Beautiful
ReplyDeleteThank you
DeleteReally very NYC neha
ReplyDeleteThank u so much
DeleteWhat a lovely story. Too good👏🏻
ReplyDeleteToo good 👌
ReplyDeletethank You komal
DeleteGood 👌🏻👌🏻
ReplyDeleteWell said
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