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ज़िंदगी मुस्कुरा ही पड़ी - मन की बात नेहा के साथ

ज़िंदगी मुस्कुरा ही पड़ी


कई बार हालात को हारता देख हम भी हारने लगते है...... और आगे के हालात सुधारने की हिम्मत भी नहीं दिखा पाते...!! परन्तु ज़िंदगी का मज़ा तो हारते हालात को जिताने में है................



 

"चलो बाय माँ, मैं निकल रही हूँ परीक्षा के लिए" - श्रुति ने अपनी माँ सुधा को आवाज लगाते हुए कहा। 

"अरे अरे रुक तो जा थोड़ा, खीर बनाई है तेरे लिए आज मुँह मीठा कर के ही जा, तेरी परीक्षा अच्छी जायेगी बेटा" - सुधा ने बेटी श्रुति के मुँह में खीर डालते कहा। 

"क्या माँ आप भी कितना सोचती हो ये सब !! अच्छा अब खीर खा ली अब जाती हूँ माँ" - श्रुति ने घर से निकलते हुए कहा। 

श्रुति के निकलते ही सुधा भगवान् के आगे हाथ जोड़ती हुई बस बेटी की परीक्षा में सफलता के लिए कामना कर रही थी !! दरअसल ये परीक्षा श्रुति और सुधा के लिए बहुत एहम है !! श्रुति मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई करना चाहती है पर घर के हालात कुछ ठीक नहीं थे !! घर में पैसो को ले कर स्तिथि बिगड़ी ही रहती थी !!

सुधा अकेले ही घर की छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी जरूरतों को पूरा करती थी । घर की सब जिम्मेदारियां सुधा पर जो थी, श्रुति छोटी थी जब सुधा के पति की मौत हो गयी थी। सुधा के पति ऑटो रिक्शा चलाने का काम करते थे जिससे घर खर्च ही मुश्किल से पुरे होते थे !! उनकी अचानक मौत के बाद सुधा के पास कोई सहारा नहीं रहा !!

सुधा की उम्र भी बहुत कम थी तब !! बहुत कम उम्र में सुधा की शादी हुई थी और बहुत कम उम्र में पति का साथ भी छूट गया था !! सुधा कुछ ख़ास पढ़ी लिखी भी नहीं थी कि कुछ काम कर पाती !! एक गरीब परिवार की बेटी थी सुधा !! ससुराल से भी कुछ समर्थन की उम्मीद नहीं थी !!

एक माँ के लिए बहुत बड़ी चुनौती थी सामने, छोटी बच्ची और उसका भविष्य सुधा के कंधो पर निर्भर था अब !! कुछ समझ नहीं पा रही थी सुधा की करे तो क्या करे !!

पर अब कुछ तो करना ही था !! एक माँ को अपनी बच्ची का अच्छा भविष्य रचना था !! सुधा को कुछ नहीं सुझा । सुधा ने लोगो के घर में काम माँगना शुरू किया तो एक दो घरो में उसे बर्तन धोने और घर के छोटे मोटे काम करने के लिए रख लिया गया, छोटे मोटे काम के लिए वेतन भी बस छोटी मोटी ही मिल पाती थी, घर के खर्चे भी पुरे न हो पाते थे । सुधा ने और भी घरो में काम करना शुरू कर दिया।  अब कुछ घर की स्तिथि ठीक थी पर सुधा दिन भर लोगो के घरो में इतने काम करके थकी हुई शाम को घर वापिस आती । घर पर आ बच्ची की जिम्मेदारी निभाती !! 

कभी कभी सुधा अपने बेटी श्रुति को अपने साथ काम पर ले जाती !! श्रुति माँ की कड़ी मेहनत देख बड़े हुई !!

एक बार सुधा जब बेटी श्रुति को ले कर घर में काम करने गयी तो घर की मालकिन सुमित्रा जी ने श्रुति को पढ़ाना शुरू किया । सुमित्रा जी एक स्कूल में अध्यपिका थी और बच्चो को पढ़ाने का उनको बहुत शोंख था ।  श्रुति की पढ़ाई में लगन देख मालकिन सुमित्रा जी ने रोज़ श्रुति को लाने ने लिए कहा । 

तबसे सुमित्रा जी ने श्रुति को रोज़ पढ़ाना शुरू किया, इतना ही नहीं सुमित्रा जी के कहने पर एक स्कूल में श्रुति को दाखिला भी मिल गया था !! पर स्कूल की फीस भरने के लिए सुधा ने जी-जान लगा डाली थी !! पूरा दिन सुधा लोगो के घरो में काम करती थी । 

जैसे तैसे आज श्रुति इतनी बड़ी और समझदार हो चुकी थी कि अपनी राहे खुद चुन रही थी । 

आज बेटी अपनी इस परीक्षा में अगर सफल हुई तो स्कॉलरशिप पा कर वो डॉक्टर बनने का सपना भी पूरा कर पाएगी !!

आखिर कुछ दिन बीते और आज बेटी की परीक्षा का नतीजा आने को है !! सुबह से माँ सुधा बस बेटी के सफल होने की कामना करती भगवान् के आगे हाथ जोड़ रही थी !! 

बेटी की आँख से आंसुओ की बौछार सामान आंसू गिरने लगे जब बेटी ने देखा कि उसकी परीक्षा में उसने सफलता हांसिल की है । माँ से जा झट से लिपट गयी श्रुति !!

"माँ आपके मन की बात भगवान् ने सुन ली, मैंने परीक्षा में सफलता प्राप्त की माँ !!" - श्रुति ने ख़ुशी के आंसुओ के साथ साथ होठो पर हसी से माँ को कहा । 

"सच्च !! तेरा डॉक्टर बनने का सपना अब पूरा हो पायेगा !!" - सुधा भी ख़ुशी के आंसुओं से भीग गयी जैसी !!

सुधा ने बेटी श्रुति को गले लगा लिया ।

सुधा के लिए बहुत ख़ास दिन है आज । इस दिन का इंतज़ार कई सालो से कर रही थी सुधा ।

"माँ, बस जल्दी ही आपको घर घर जा कर काम नहीं करना पड़ेगा" - बेटी श्रुति ने माँ का हाथ पकड़ते हुए कहा । 

"चल अब रुला मत ज्यादा, मालकिन से मिलने भी जाना है, उनको भी तो ये खबर देनी है, आखिर सब कुछ उनकी वजह से ही तो संभव हुआ है" - माँ ने श्रुति से बहुत उत्साहित हो कर कहा । 

मालकिन सुमित्रा जी को मिलते ही सुधा ने दोनों हाथ जोड़ लिए, सुधा जी का रोम रोम मालकिन सुमित्रा जी का धन्यवाद कर रहा हो जैसे !!

 "मालकिन आज आपकी बदौलत मेरी बेटी भी अब डॉक्टर बन पाएगी !! आपने उस समय राह न दिखाई होती तो आज ये दिन ना आता" - सुधा ने सुमित्रा जी का धन्यवाद करते कहा । 

"नहीं सुधा नहीं, ये तुम्हारी तपस्या है और श्रुति की लगन !! मैंने देखा है तुम्हे श्रुति की फीस भरने के लिए कड़ी मेहनत करते हुए !! मैंने तो उसकी लगन देख उसे बस राह दिखाई थी !! उस राह पर चलना और निभाना इसका श्रेय श्रुति और तुम्हारा है । आज तुमने साबित कर दिया कि एक माँ अपने बच्चे का नसीब अपनी मेहनत से बदल भी सकती है और अति सुन्दर भविष्य लिख भी सकती है !!" - सुमित्रा जी की भी आँख ये कहते नम हो गयी !!

"माँ मैं जल्दी ही काबिल बन कर दिखाओगी, आपको यूँ घरो में काम नहीं करने दूगी अब, आपने मेरे भविष्य के लिए बहुत कुछ किया !! अब बारी मेरी माँ ।" - कहते श्रुति के दिल में अपार ख़ुशी समायी थी । 




आखिर अंधेरो में से आज रौशनी की किरन लपक ही पड़ी थी !! एक नयी ज़िंदगी की शुरुवात और दुखो का अंत होने को था !! आखिर सब दु:खो को हरा आज ज़िंदगी मुस्कुरा ही पड़ी थी .................!!


Thank You.....

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हालातों की सीख़ - मन की बात नेहा के साथ