वैसे तो कोई बंधन में बंध कर नहीं रहना चाहता परन्तु कुछ बंधन ऐसे है जिसमे बंध कर हर कोई खुश है, ऐसे बंधन में से एक है दोस्ती का बंधन| दोस्ती एक अटूट बंधन ही तो है जिसे हम सब स्वयं ही बांधते है, क्यों की कुछ बंधन अच्छे जो लगते है !!
वो लम्हे जो दोस्ती के नाम लिखे जाते है, हमेशा बहुत ख़ास यादों के रूप में याद आते है, उमरभर के लिए दिल में घर कर जाते है| फिर चाहे वो दोस्त आपको रोज़ मिल सके या सालो बाद, उसकी दोस्ती आप यादों में महसूस जरूर करते है !!
समय तो बदलता रहता है, हमे भी तो वक़्त के साथ बदलना ही पड़ता है !! पर एक सच्ची दोस्ती है जो बदलते वक़्त के साथ भी कभी नहीं बदलती, जैसी थी वैसी ही रहती है, उतनी ही ख़ास, उतनी ही मजबूत और उसकी यादें उतनी ही मीठी !! दोस्ती की खुशबू हमेशा ताज़ी महकती है !!
दोस्ती पर लिखी मेरी कुछ पंक्तिया इस प्रकार है :
यूँ ही बैठे बैठे सोच रहीं हूँ,
ये दोस्ती भी कितनी ख़ास है,
एक गहरा एहसास है.....
वो साथ में बिताये कुछ पल,
आज भी मेरे पास है.....
यूँ ही बैठे बैठे सोच रहीं हूँ,
ये दोस्ती भी कितनी ख़ास है.....
कुछ पलो की मस्ती,
उमरभर का उपहार है...
वो ग्रुप में की गयी बातें,
आज भी मुझे याद है...
वो एक दूसरे की टांग खिचाई,
मेरे चेहरे की आज भी मुस्कान है...
यूँ ही बैठे बैठे सोच रहीं हूँ,
ये दोस्ती भी कितनी ख़ास है.....
साथ में दिन बिताना,
रात में भी चैट्स में लग जाना...
कॉलेज की कैंटीन में की मस्ती,
फिर क्लास रूम में आ कर सीधे बन जाना...
कुछ पलो का वो दोस्तों का साथ,
उमरभर का एहसास है ...
यूँ ही बैठे बैठे सोच रहीं हूँ,
ये दोस्ती भी कितनी ख़ास है......
न कल की फ़िक्र थी दोस्तों संग, न आज की थी चिंता...
साथ थे जब सब दोस्त, बहुत सुकून था जैसे मिलता...
मैं याद कर के रो भी लेती हूँ, वो वक़्त था ही कुछ ऐसा ...
यूँ ही बैठे बैठे सोच रहीं हूँ,
ये दोस्ती भी कितनी ख़ास है.......
न समझा था तब,यूँ इतने याद आओगे तुम यारो
आज अकेले बैठी हूँ अब,तुम्हे शब्दों में लिख रही हूँ प्यारो
क्या मालुम था ये यादें, बहुत याद आएँगी
तनहा बैठूंगी मैं और मुझे सताएंगी...
यूँ ही बैठे बैठे सोच रहीं हूँ,
ये दोस्ती भी कितनी ख़ास है.......
वो याद है मुझे तुम सबका होना साथ
दुःख में भी हस देती थी, जब संभाल लेते थे तुम्हारे हाथ...
वो यादें कितनी ख़ास है, आज भी दिल में पास है...
आज कीमत उन पलो की बढ़ सी गयी है,
दूरी के एहसास में संजो सी गयी है ...
यूँ ही बैठे बैठे सोच रहीं हूँ,
ये दोस्ती भी कितनी ख़ास है......
क्यों वक़्त वो यूँ चला गया, कुछ देर और ठहरा होता
मैं और जी लेती तुम सबको, मौका थोड़ा और मिला होता
वक़्त ने तो जैसे आज बाँध दिया है, आजादी तो तब थी
दूरिया तो बस मिलो की है, दिलो की भला कब थी ...
यूँ ही बैठे बैठे सोच रहीं हूँ,
ये दोस्ती भी कितनी ख़ास है...........
काश वो पल फिर से हाथ लग जाए, मैं कस कर पकड़ लुंगी उन्हें
न छूटने दूंगी इस बार वक़्त को, थाम मुट्ठी में लुंगी उन्हें...
साथ बीते पल, फिर से सजा लुंगी मैं उन्हें...
यादें ही तो सहारा है, महसूस किया है मैंने.......
यूँ ही बैठे बैठे सोच रहीं हूँ,
ये दोस्ती भी कितनी ख़ास है.......
आज मेरी स्याही से, तुम सबको पिरोया है
तुम सबके साथ बीता हर लम्हा, बहुत याद आया है
जानती हूँ वो लम्हा फिर न आएगा,
फिरसे मिलने के इंतज़ार में कुछ वक़्त और गुजर जाएगा....... !!
यूँ ही बैठे बैठे सोच रहीं हूँ,
ये दोस्ती भी कितनी ख़ास है
एक गहरा एहसास है ...............|
एक सच्चा दोस्त तो आसमान का वो तारा है, जिसे आप हमेशा तो नहीं देख पाते, पर आप जानते है की वो हमेशा यही है......!!
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5 Comments
Thanks neha.🙂
ReplyDeleteReally yr bhut vadiya likhya
ReplyDeletethank u
ReplyDelete😍😍😍😍
ReplyDeleteLovely 😍
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